इतिहास और दर्शन के पन्नों में युगों का चक्र चलता रहता है—सतयुग, त्रेता, द्वापर और अंत में कलयुग। कलयुग को नैतिक पतन, स्वार्थ और अंधकार का युग माना गया है, जहाँ मानवता आदर्शों से भटक जाती है। परन्तु, क्या इस घोर अंधकार में भी प्रकाश की एक किरण संभव है? क्या वर्तमान की कठोर वास्तविकताओं के बीच एक ऐसे समाज की नींव रखी जा सकती है जहाँ सत्य, करुणा, [...] Read more